सौरमंडल (Solar System)
सूर्य एवं उसके चारों ओर भ्रमण करने वाले 8 ग्रह, 205 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ एवं क्षुद्रग्रह संयुक्त रूप से सौरमंडल कहलाते हैं। इसका निर्माण लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ था।
सूर्य (Sun)
सूर्य जो कि सौरमंडल का जन्मदाता है, एक तारा है, जो ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत, उसके केन्द्र में हाइड्रोजन परमाणुओं का नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम परमाणुओं में बदलना है। सौर परिवार के द्रव्यमान 99.8% सूर्य में निहित है इसकी अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण अन्य ग्रह इसका चक्कर लगाते हैं।
सूर्य की संरचना (Structure of Sun)
सूर्य का जो भाग हमें आँखों से दिखाई देता है, उसे प्रकाशमंडल (Photosphere) कहते हैं। सूर्य का बाह्यतम भाग जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है, कोरोना (Corona) कहलाता है। कभी-कभी प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान इतने अधिक वेग से निकलता है कि सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है; इसे सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं। जब यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश (Aurora Light) उत्पन्न करता है, जिसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर इसे औरोरा बोरियालिस एवं दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा ऑस्ट्रालिस कहते हैं। सौर ज्वाला जहाँ से निकलती है, वहाँ काले धब्बे-से दिखाई पड़ते हैं। इन्हें ही सौर-कलंक (Sun Spots) कहते हैं। ये सूर्य के अपेक्षाकृत ठंडे भाग हैं, जिनका तापमान 1500°C होता है। सौर कलंक प्रबल चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है, जो पृथ्वी के बेतार संचार व्यवस्था को बाधित करता है। इनके बनने - बिगड़ने की प्रक्रिया औसतन 11 वर्षों में पूरी होती है, जिसे सौर-कलंक चक्र (Sunspot Cycle) कहते हैं। सौर कलंकों की तीव्रता पिछले 100 वर्षों में वर्ष 2019 में सबसे कम रही, इसे सौर न्यूनतम (Solar Minimum) के रूप में भी जाना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान में 11 वर्ष का नया सौर चक्र (25वाँ) प्रारम्भ हो गया है।
ग्रह (Planet)
तारों की परिक्रमा करने वाले प्रकाश रहित आकाशीय पिण्ड को ग्रह (Planet) कहा जाता है। ये सूर्य से ही निकले हुए पिंड हैं तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनका अपना प्रकाश नहीं होता, अत: ये सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं व ऊष्मा प्राप्त करते हैं। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व दिशा में करते हैं, परन्तु शुक्र व अरुण इसके अपवाद हैं तथा ये सूर्य के चारों ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में परिभ्रमण करते हैं। आंतरिक ग्रहों (Inner Planets) के अंतर्गत बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल आते हैं।सूर्य से निकटता के कारण ये भारी पदार्थों से निर्मित हैं ।
जबकि, बाह्य ग्रहों (Outer Planets) में बृहस्पति, शनि, अरुण व वरुण आते हैं, जो हल्के पदार्थों से बने हैं। आकार में बड़े होने के कारण इन ग्रहों को ग्रेट प्लेनेट्स (Great Planets) भी कहा जाता है। सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति (Jupiter) और सबसे छोटा ग्रह बुध (Mercury) है।
सौरमंडल के ग्रहों का सूर्य से दूरी के बढ़ते क्रमों में विवरण निम्नानुसार है
1. बुध (Mercury)
बुध सूर्य का सबसे निकटतम तथा सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। यह 88 दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेता है। सूर्य और पृथ्वी के बीच में होने के कारण बुध एवं शुक्र को आन्तरिक ग्रह (Interior Planets) भी कहते हैं। वायुमंडल के अभाव के कारण बुध पर जीवन सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ दिन अति गर्म व रातें बर्फीली होती हैं। इसका तापान्तर सभी ग्रहों में सबसे अधिक (560°C) है। बुध का एक दिन पृथ्वी के 90 दिन के बराबर होता है। परिमाण (Mass) में यह पृथ्वी का 1/18वाँ भाग है। बुध के सबसे पास से गुजरने वाला कृत्रिम उपग्रह मैरिनर - 10 था, जिसके द्वारा लिए गए चित्रों से पता चलता है कि इसकी सतह पर अनेक पर्वत, क्रेटर और मैदान हैं। इसका कोई भी उपग्रह नहीं है।
2. शुक्र (Venus)
यह सूर्य से निकटवर्ती दूसरा ग्रह है तथा सूर्य की परिक्रमा 225 दिनों में पूरी करता है। यह ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत सूर्य की पूर्व से पश्चिम दिशा में परिक्रमण करता है। यह पृथ्वी के सर्वाधिक निकट है, जो सूर्य व चन्द्रमा के बाद सबसे चमकीला दिखाई पड़ता है। इसे सांझ का तारा (Evening Star) तथा भोर का तारा (Morning Star) भी कहते हैं, क्योंकि यह शाम को पश्चिम दिशा में तथा सुबह पूर्व दिशा में दिखाई देता है। आकार व द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा ही कम होने के कारण इसे पृथ्वी की जुड़वा बहन कहा जाता है। शुक्र के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड (CO, ) 90-95% तक है। इसका कोई भी उपग्रह नहीं है।
3. पृथ्वी (Earth)
यह सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरा ग्रह है तथा सभी ग्रहों में आकार की दृष्टि से पांचवा स्थान रखता है। यह शुक्र और मंगल ग्रह के बीच स्थित है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर भ्रमण करती है।
यह अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है। इसका एक परिक्रमण लगभग 365 दिन में पूरा होता है। इसकी सूर्य से औसत दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है। चारों ओर मध्यम तापमान, ऑक्सीजन और प्रचुर मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण यह सौरमंडल का अकेला एस ग्रह है, जहां जीवन है। अंतरिक्ष से जल की अधिकता के कारण नीला दिखाई देता है इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहते है। पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह चंद्रमा (Moon) है।
4. मंगल (Mars)
यह सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी के बाद चौथा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 687 दिनों में पूरी करता है। मंगल ग्रह सौर मंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है जिसका आकार पृथ्वी का लगभग आधा है। मंगल की सतह लाल होने के कारण इसे लाल ग्रह (Red Planet) भी कहते हैं। मंगल के लाल दिखने का कारण इसकी चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण, जंग लगाना और धूल कणों की उपस्थिति है। इस ग्रह पर वायुमंडल अत्यंत विरल है। इसकी घूर्णन गति पृथ्वी की घूर्णन गति के समान है। फोबोस और डीमोस मंगल के दो उपग्रह हैं। डीमोस सौरमंडल का सबसे छोटा उपग्रह है। इस ग्रह का सबसे ऊँचा पर्वत निक्स ओलंपिया है, जो एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है।
मंगल के दो उपग्रह है 1. फ़ोबोस 2. डीमोस
5. बृहस्पति (Jupiter)
यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है, सूर्य की परिक्रमा 11.9 वर्ष में करता है। सौरमंडल में इसके 79 उपग्रह हैं, जिनमें गैनिमीड सबसे बड़ा है। यह सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है। आयो, यूरोपा, कैलिस्टो, अलमथिया आदि इसके अन्य उपग्रह हैं। बृहस्पति को लघु सौर-तंत्र (Miniature Solar System) भी कहते हैं। इसके वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें पाई जाती हैं। यहाँ का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी के वायुमंडलीय दाब की तुलना में 1 करोड़ गुना अधिक है। यह तारा और ग्रह दोनों के गुणों से युक्त होता है, क्योंकि इसके पास स्वयं की रेडियो ऊर्जा है।
6. शनि (Saturn)
यह आकार में दूसरा बड़ा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 29.5 वर्ष में पूरी करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्यरेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों का होना है, जिनकी संख्या 7 है। यह वलय अत्यंत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं, जो सामूहिक रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण इसकी परिक्रमा करते हैं। शनि को गैसों का गोला (Globe of Gases) एवं गैलेक्सी समान ग्रह (Galaxy Like Planet) भी कहा जाता है। आकाश में यह ग्रह पीले तारे के समान दृष्टिगत होता है। इसके वायुमंडल में भी बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया गैसें मिलती हैं। अब तक इसके 82 उपग्रहों का पता लगाया जा चुका है। टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है, जो आकार में बुध ग्रह के लगभग बराबर है। यह सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है। मंगल ग्रह की भाँति यह नारंगी रंग का है। टाइटन पर वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण दोनों का प्रभाव बराबर हैं।
7. अरुण (Uranus)
इसकी खोज 1781 ई. में सर विलियम हरशेल द्वारा की गई। यह सौरमंडल का सातवाँ तथा आकार में तृतीय ग्रह है। अधिक अक्षीय • झुकाव के कारण इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं। यह सूर्य की परिक्रमा 84 वर्षों में पूरी करता है। यह भी शुक्र ग्रह की भाँति ही ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम दिशा में सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण करता है। इस ग्रह पर वायुमंडल बृहस्पति और शनि की ही भाँति काफी सघन है, जिसमें हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन एवं अमोनिया हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह हरा दिखाई देता है। सूर्य से दूर होने के कारण यह काफी ठंडा है। शनि की भाँति अरुण के भी चारों ओर वलय है। अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, इटा, लैम्ब्डा और इप्सिलॉन इत्यादि अरुण ग्रह के वलय हैं। इसके 27 उपग्रह हैं। अरुण पर सूर्योदय पश्चिम दिशा में एवं सूर्यास्त पूर्व दिशा में होता है। ध्रुवीय प्रदेश में इसे सूर्य से सबसे अधिक ताप और प्रकाश मिलता है।
8. वरुण (Neptune)
इसकी खोज जर्मन खगोलशास्त्री जोहान गाले ने वर्ष 1846 में की थी। यह 165 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरा करता है। यहाँ का वायुमंडल अति घना है। सौरमंडल का सर्वाधिक ठण्डा ग्रह वरुण है। इसमें हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया विद्यमान रहती हैं। यह ग्रह हल्का पीला दिखाई देता है। इसके 14 उपग्रह हैं। इनमें ट्रिटोन व मेरीड प्रमुख हैं।
प्लूटो (Pluto)
यम या कुबेर (प्लूटो) की खोज 1930 ई. में क्लाइड टॉम्बैग ने की थी तथा इसे सौरमंडल का नौवाँ एवं सबसे छोटा ग्रह माना गया था परंतु 24 अगस्त, 2006 में चेक गणराज्य के प्राग में हुए इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने इससे ग्रह का दर्जा छीन लिया। सम्मेलन में 75 देशों के 2,500 वैज्ञानिकों ने ग्रहों की नई परिभाषा दी। वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा ठोस पिंड जो अपना गुरुत्व करने लायक विशाल हो, गोलाकार हो एवं सूर्य का चक्कर लगाता हो, ग्रहों के श्रेणी में आएगा। साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए। प्लूटो के साथ समस्या यह हुई कि उसकी कक्षा वरुण (नेपच्यून) की कक्षा (ऑरबिट) से ओवरलैप करती है। सीरीस, शेरॉन (Charon) और इरीस (2003) यूबी-313/जेना) को ग्रह मानने के विचार को भी अस्वीकृत कर दिया। नई परिभाषा में इन चारों को बौने ग्रह (Dwarf Planet) का दर्जा दिया गया है। इस प्रकार, अब सौरमंडल में मात्र 8 ग्रह रह गए हैं।
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