नैनो तकनीकी | NANO TECHNOLOGY | UPSC IAS IPS

 

नैनो तकनीकी

NANO TECHNOLOGY



इसे 21 वीं शताब्दी के विज्ञान के रूप में चिहित किया गया है।

नैनो स्तर पर (1-100nm) पदार्थ के गुणधर्म के अध्ययन की शाखा नैनो विज्ञान कहलाती है, तथा नैनो स्तर पर  अणुयो तथा परमाणुओं को व्यवस्थित कर मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद तथा प्रक्रिया के सृजन की प्रौद्योगिकी नैनो प्रौद्योगिकी कहलाती है। इसके अन्तर्गत परमाणुओं तथा अणुयों के विन्याश में परिवर्तन कर एक नया अणु (super molecule) या नया पदार्थ (Super matter) बनाया जाता है। यह भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अभियांत्रिकी का मिलाझुला रूप है।

नैनो तकनीकी का उद्भव तथा विकास

Ø 1954 में रिचर्ड फाइमेन ने  नैनो तकनीक की अवधारणा दी, अतः  इन्हें नैनो तकनीक अवधारणा के जनक कहा जाता है। रिचर्ड फाइमेन  का नैनो तकनीक पर प्रसिद्ध व्याख्यान “There's plenty of Room At the Bottom” है जो उन्होंने 29 दिसम्बर 1959 को कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी की वार्षिक बैठक में दिया।

Ø वर्ष 1974 में  नोरिओ तानिगुची (Norio Tsniguchi) के द्वारा नैनो शब्द का प्रयोग किया गया।

Ø वर्ष 1981 गर्ड बिनिग (Gerd Binnig) तथा (हेनरिक रोहरर) Heinrich Rohrer ने (Scanning Tunneling Microscope) अवलोकन सुरंगन  सूक्ष्मदर्शी ) का निर्माण किया, इसके लिए इन्हे 1986 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।

Ø वर्ष 1985 में गर्ड बिनिग ने Atomic Force Microscope (आणविक बल सूक्ष्मदर्शी) का निर्माण किया। Scanning Tunneling Microscope (STM) तथा Atomic Force Microscope (AFM) के द्वारा पहली बार किसी पदार्थ को परमाणविक तथा आणविक स्तर पर देखाना सम्भव हो पाया तथा उनके गुणधर्म का अध्ययन सम्भव हो पापा।

Ø वर्ष 1986 में हेनरी क्रोटो, रिचर्ड स्मेली तथा रॉबर्ट कर्ल ने मिलकर फुलरीन (Fullerene) C-60 की खोज की, इसके  लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार मिला ।

Ø वर्ष 1986 ने इरिक डेक्सलर (ERIC DREXLER) ने नैनो तकनीक को विख्यात किया तथा इंजन ऑफ क्रीऐशन (Engine of creation) की अवधारणा दी। इस मशीन को Nano Assembler (नैनो असेम्बलर) मशीन कहते है।

Ø वर्ष 1931 में सुमियो इजिमा ने नैनों ट्युब का निर्माण किया।

Ø वर्ष 2004 में आन्द्रे जीम तथा नोबो सिलोन ने ग्रेफिन का निर्माण किया इसके लिए इन्हे  नोबेल पुरुस्कार दिया गया।

Ø वर्ष 2023  में मोउंगी बावेंडी,  लुईस ई. ब्रुस तथा एलेक्सी एकिमोव को Quantum Dots (क्वांटम डॉट्स) के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।

Ø भारत में पदार्थ विज्ञान तथा नैनो प्रोद्योगिकी  का जनक प्रो० सी एन. राव (C.N.RAO) को माना जाता है।

 

नैनो तकनीकी के उपागम

1. Top Down टॉप डाउन अवधारण नारियो तानीगुची

2. Bottom up बॉटम अप अवधारणा एरिक ड्रेक्सलर

 

Top Down अवधारणा

इसके अन्तर्गत स्थूल सरचनाओं को लेजर के द्वारा काट छांट कर नैनो संरचनाओ का निर्माण किया जाता है। यह अत्यंत खर्चीली प्रक्रिया है, तथा वर्तमान में व्यवहार में है।

 

Bottom up अवधारण

इस सदर्भ में एरिक ड्रेक्सलर ने नैनो असेम्बलर मशीन की अवधारणा दी है यह रासायनिक संश्लेषण पर आधारित दृष्टिकोण है, इसके अन्तर्गत परमाणु तथा अणुयो को व्यवस्थित कर नैनो सरचनाओं का निर्माण किया जाता है, इसे आणविक नैनो प्रौद्योगिकी कहते है तथा यह वर्तमान में प्रयोगात्मक स्तर पर है।

 

नैनो पदार्थ

1 फुलेरीन (C-60):- 60 कार्बन के परमाणु पेन्टागन तथा हैक्सागन (पंचकोण तथा षट्कोण) विन्यास में व्यस्थित होते है। यह एक फुटबॉलनुमा सरचना होती है जिसका प्रयोग वायुयान, पेसमेकर इत्यादि के निर्माण में किया जाता है।

 

2. ग्रेफीन:- यह कार्बन के परमाणुओं की एक स्तरीय तथा द्विआयामी संरचना है जिसमे कार्बन के अणु षटकोण (हेक्सागन) के रूप में व्यवस्थित है इसका महत्वपूर्ण उपयोग IC (एकीकृत पथ) के निर्माण में, T.V. LED, कम्प्यूटर डिसफ्ले, सौर पैनल इत्यादि के निर्माण में किया जा रहा है।

3. कार्बन नैनो ट्यूब:- यह ग्रेफीन की बनी एक नलिकाकार सरचना होती है जो स्टील से 200 गुना मजबूत एल्यूमीनियम से 10 गुना हल्का, चादी तथा कॉपर की तुलना में एक 1000 गुना ज्यादा सुचालक, तापक्रम के वहन की क्षमता 780 से 2800 C तथा तन्यता के आधार पर अब तक का सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है

उपयोग - ऊर्जा के भण्डारण में, सौर पेनल के निर्माण में तथा चिकित्सा के क्षेत्र में इसका उपयोग किया जा रहा है।

 

4. क्वाटम डॉट्स:- यह अर्द्ध चालक पदार्थों गेलियम आर्सेनाइड से निर्मित नैनो संरचनाएं है, जिन्हे कृत्रिम अणु भी कहते है इनके आकार को नियंत्रित कर के इन्हें प्रकाश के विशिष्ट तरंगदैर्ध्य के अवशोषण तथा उत्सर्जन में सक्षम बनाया जाता है। उपयोग - सौर पैनल, LED में प्रकाश संवेदक के रूप में।

 

विभिन्न क्षेत्र में नेनो प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग

1.  कृषि क्षेत्र:-

     i.        नैनो यूरिया तथा नैनो DAP:-  नैनो यूरिया तथा नैनो DAP नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम के स्रोत है, जो कृषि के क्षेत्र में अत्यंत प्रभावशाली परिणाम देने वाले सिद्ध हुई है। इनका छिड़काव पौधो की पत्तियो पर किया जाता है जिससे इनके उपभोग की कुशलता (80-85%) सामान्य यूरिया (40-45%) की अपेक्षा बढ़ जाती है। सामान्य यूरिया को पौधों की जड़ो के द्वारा अवशोषित किया जाता है। नैनो यूरिया तथा नैनो DAP को स्वदेशी तकनीकी से IFFCO (Indian Farmers Fertilizers Cooperative Limited) द्वारा विकसित किया गया है

    ii.        नैनो क्ले तथा नैनो जिओलाइट

नैनो क्ले तथा नैनो जिओलाइट जल धारण क्षमता की दृष्टि से प्रभावशाली है जिसका प्रयोग विशेषरूप से बलुई मिट्टी में कृषि को सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।

 

2.   चिकित्सा क्षेत्र में

         i.        रोग सुरक्षा - Preventive measure:- Conjugated vaccine (संयुग्मित टीके) नैनो प्रौद्योगिकी का उदाहरण है। उदा० DNA टीका, M-RNA टीका

       ii.        रोग निदान Diagnosis:- इन साधनो के माध्यम से अत्यंत सीमित नमुने के द्वारा कम समय में अधिक सटीकता के साथ रोगो की उपस्थिती की पता लगाया जा सकता है। इस सदर्भ में Lab on A Chip की अवधारणा प्रस्तुत की गई जो गोल्ड नैनो कणों से बने Biosensor (जैव सूचक) होगें, जो एक साथ कई रोगों का पत्ता लगा पाने में सक्षम होंगे। इनका प्रयोग करके शरीर के अन्दर भी किसी बीमारी के कारण का पता लगाया जा सकता है।

      iii.        रोग उपचार medication:- नैनो सेन्सर के द्वारा शरीर में रोग कारकों का पता लगा कर आवश्यक दवाओं को लक्षित कोशिका तक पहुचा कर लक्षित चिकित्सा को सुनिश्चित किया जा सकता है। इससे दवाओं के मात्रात्मक उपयोग में कमी, चिकित्सा की प्रभावशीलता में वृद्धि तथा चिकित्सा में लगने वाले समय में कमी तथा चिकित्सा के साइड इफैक्ट को कम करने में सहायता मिलेगी।

इस प्रक्रिया में कार्बन नैनो ट्यूब, डेन्ड्राइमर तथा फुलरीन का प्रयोग किया जाता है तथा इन्हें BIOMEME या नैनो रोबोट भी करते है।

जीन चिकित्सा भी नैनो चिकित्सा का उदाहरण है।

चांदी के नैनो कणों से बनी जीवाणु रोधी पट्टियों का उपयोग किया जा रहा है जो किसी घाव पर जीवाणुयो की सक्रमण की आशंका को नगण्य करता है।

 

3.        ऊर्जा क्षेत्र में नैनो प्रौद्योगिकी का प्रयोग:- नैनो कणों के प्रयोग से वर्तमान सिलीकॉन आधारित सौर पेनल के मुकावले ग्रेफीन या CNT आधारित सौर पेनल की प्रकाश अक्शोषण की क्षमता में वृद्धि होगी। जिससे विद्युत उत्पादन क्षमता वढ जाऐगी। ग्रेफीन एक पलली परतनुमा संरचना होती है जो आसानी से कही भी लगाई या चिपकाई जाती जा सकती है। तथा यह दृथ्य प्रकाश के साथ-साथ अवरक्त विकिरण को भी अवशोषित कर सकता है।

हाइड्रोजन ईधन सेल के निर्माण में भविष्य में ग्रेफिन का उपयोग किया जाएगा जो ऊर्जा दक्षता को बढ़ाने के साथ -साथ Eco Friendly प्रकृति का होगा।

 

4.  अंतरिक्ष के क्षेत्र में:- उपग्रह, उपग्रहयान, अतरिक्ष यात्रियों के सूट इत्यादि के निर्माण में नेनो सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है।

5.  रक्षा के क्षेत्र में:- सैनिको के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट के निर्माण में।

6.  उपभोक्ता उप्तादो के निर्माण:-

     i.  एल..डी, लैपटॉप, कम्प्यूटर डिस्प्ले इत्यादि के निर्माण में नैनो सामग्री का उपयोग किया जा रहा है।

    ii.  वस्त्र उद्योगों में नैनो फाइबर के धूलरोधी, तापरोधी, जलरोधी कपडे तैयार किये जा रहे है।

   iii.  TiO2 (टाइटेनियम ऑक्साइड) का प्रयोग सन क्रीम में किया जाता है, जो UV रेडियेशन के लिए अवरोधक का कार्य करता है।

 

नैनो प्रौद्योगिकी की चिताएं तथा चुनौतियां:-

1. स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौती - नैनो उत्पाद बड़ी तेजी से कोशिका में प्रवेश करते हुए कोशिका के कार्यों को प्रभावित करते हैं। केन्चुए में एक प्रयोग के द्वारा इसे देख गया है।

2. पर्यावरणीय चुनौती – (नैनो प्रदूषण)  नैनो कणो का आसानी से अपघटन नहीं होता है, अतः इनके इकट्टा  होने से नैनो प्रदूषण की समस्या उत्पन होगी जो पर्यावरण को नकारामक रूप से प्रभावित करेगी।

3. सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष- नैनो तकनीकी एक मंहगी तकनीकी है तथा इसके द्वारा प्राप्त उत्पाद महगें  मूल्य पर उपलब्ध है जिसका उपभोग समाज का एक विशेष वर्ग कर पा रहा है। अतः यह सामाजिक खाई को उत्पन्न करेगा।

4. ग्रे गू (Gray Goo) नेनो संरचनाओ के निर्माण में परिकल्पित नैनो असेम्बलर मशीन किसी संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री को एकत्र करने तथा इसे परमाणविक स्तर पर विखडित करने में सक्षम होगी, तथा यह मशीन अगर अनियंत्रित हो जाती है अथवा किसी आंतकवादी संगठन के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है तो जैव विविधता खतरे में पड जाऐगी।

 

भारत में नैनो प्रौद्योगिकी:- भारत में नैनो विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मिशन की शुरुआत प्रो० सी एन राव (भारत में पदार्थ विज्ञान तथा नैनो प्रोद्योगिकी के जनक) के द्वारा 2007 में की गई। इसका प्रमुख लक्ष्य नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मानव संसाधन का विकास, अनुसंधान के लिए आधारभूत संरचना का विकास तथा नैनो अनुप्रयोग तथा तकनीकी विकास केन्द्रों का विकास करना है। 2014 में इसके द्वितीय चरण की शुरुआत की गई।

 

प्रश्न:- मानव स्वास्थ्य क्षेत्र में नैनो प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों की चर्चा कीजिए।

प्रश्न :- नैनो तकनीकी को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न उपागम, अनुप्रयोग तथा चुनौतियों को रेखांकित कीजिए।

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