बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति

 बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति

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भारत वर्ष का इतिहास बहुत पुराना  है। यह क्षेत्र शुरुआत से ही हर तरह से परिपूर्ण रहा है इस कारण इस क्षेत्र पर अनेक विदेशी हमलावरों का आगमन होता रहा है। जैसे आर्यों का आगमन, मुगलों का आगमन, तुर्कों का आगमन अग्रेजों का आगमन, पूर्तगलियों का आगमन आदि। ये सिर्फ भारत वर्ष में लूट पाट के उद्देश्य से आए थे लेकिन यहाँ की परिपूर्णता को देख कर यही बस गए। और यहाँ के मूलनिवासियों पर धोके से शासन करने लग गए। जब ये विदेशी हमलावर भारत वर्ष आए थे वे अपने साथ अपने क्षेत्र विशेष की कुछ रीति-रिवाज, प्रथा , परंपरा आदि भी साथ लाए जो धीरे धीरे यहाँ जी संस्कृति में समाहित ही गई और कुछ रीति-रिवाज इन हमलावरों के डर से या उनके बचाव से चलन में आ गए। लेकिन आज के परिपेक्ष्य में इन रीति-रिवाज या प्रथाओं ने सामाजिक कुरीति का रूप ले लिया है, जिनका वर्तमान में कोई औचित्य नहीं है। जिनका वर्तमान में अस्तित्व खत्म ही ही जाना चाहिए लेकिन ये कुरीति आज भी हमारी भारतीय संस्कृति में खूब फल फूल रही। 

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        आज हम एक ऐसी ही सामाजिक कुरीति के बारे में चर्चा करेंगे जो बाल विवाह के नाम से जानी जाती है। बाल विवाह का नाम आते ही हमारे जहन में अपने आप एक तस्वीर बन जाती है। ऐसा विवाह जिसमे वर व वधू शारीरिक, सामाजिक व मानसिक रूप से परिपक्व न हो वह विवाह  बाल विवाह की श्रेणी में आता है। कानूनन रूप से अगर लड़के की उम्र 21 साल व लड़की की उम्र 18 से कम पर शादी की जाती है तो बाल विवाह की श्रेणी में आता है। बाल विवाह एक सभ्य समाज के लिए एक अभिशाप है। बाल विवाह बच्चों के मानवाधिकारों को खत्म कर देता है व बच्चों की बचपन को छिन लेता है। 

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बाल विवाह के कारण 

बाल विवाह के कारणों के बारें में अगर हम चर्चा करें तो हम पाएंगे की बाल विवाह के लिए अनेक कारण जिम्मेदार है, जो निम्न हो सकते है। 

1 . जाती प्रथा को बनाए रखना 

मनु ने मनु स्मृति में चतुर्यवर्ण व्यवस्था बनाई जिसमे मानव को चार वर्णों मे विभाजित किया गया  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। जिसमे शूद्र को सबसे नीचा माना  गया सबसे उच्च ब्राह्मण, फिर क्षत्रिय, फिर वैश्य और अंत में शूद्र को रखा गया। और इस जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ कायदे कानून बनाए, जिनमे से बाल विवाह भी एक था। लड़की की शादी जाति प्रथा को बनाए रहने के बचपन में ही कर दी जाती थी, क्योंकि बचपन में लड़की या लड़का समझदार नहीं होता है इसलिए वह शादी के लिए मना नहीं कर पता है। लेकिन अगर लड़का और लड़की वयस्क हो जाते है तो उनमें अपने जीवन के अच्छे बुरे का पता होता है तो वे अपनी मर्जी से किसी दूसरी जाति में कर सकते हैं जिससे जाति व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है।इसलिए बाल विवाह का प्रारंभ हुआ। 

2. लिंग के आधर पर भेदभाव 

अधिकतर देखा गया है की ज्यादातर परिवारों में लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता और लड़कियों को बोझ समझा जाता है, और माता पिता लड़कियों की कम उम्र में ही शादी करके उस बोझ से हल्के होने चाहते। और वे लोग लड़कियों की शिक्षा आदि  को बोझ समझते हैं । 

3. हमलावरों से बचाव 

जब हमलावर भारत आए थे तो वो लूट पाट करते थे और साथ ही साथ वो यहाँ के मूल निवासियों की महिलाओं  को भी जबरन ले जाए करते थे, और अधिकतर वो विदेशी हमलावर कुवारी लड़कियों को ले जाया करते थे। इस कारण अपनी लड़कियों को बचाने के लिए भारत के मूलनिवासियों ने बाल विवाह करना प्रारंभ कर दिए। क्योंकि विदेशी हमलावर शादीशुदा महिलाओं को नहीं ले जाते थे। इस तरह इसे भी एक बाल विवाह होने कारण मानते है। 

4. गरीबी 

अधिकतर माँ बाप गरीबी के कारण अपनी बेटी की शादी कम उम्र में कर देते है। गरीब होने के कारण वे लोग सोचते हैं की अगर लड़की की शादी जल्दी कर दी तो उसकी पढ़ाई-लिखाई, स्वास्थ्य भोजन आदि के ऊपर होने वाला खर्चा बचेगा। 


बाल विवाह के दुष्परिणाम 

बाल विवाह के अनेक दुष्परिणाम सामने आते है जो निम्न हैं 
1. बाल विवाह करने पर लड़की शारीरिक परिपक्वता के बिना ही जल्दी माँ बन जाती है, जिससे माँ  के स्वास्थ्य व बच्चे के  स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, कई  बार तो डिलेवरी के समय माँ की या फिर बच्चे की  मृत्यु हो  जाती है। जल्दी माँ बनने पर बच्चा भी शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होता है। 
2. कम उम्र में शादी होने पर लड़की या लड़के पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ आ जाती है जिससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वो अशिक्षित रह जाते है।


बाल विवाह रोकथाम के उपाय 

1. बाल विवाह को रोकने के लिए सर्वप्रथम सामाजिक चेतना जगानी पड़ेगी, एवं बाल विवाह के प्रति जागरूकता लानी पड़ेगी। 
2. अधिक से अधिक शिक्षा का प्रसार  करके हम बाल विवाह रोक सकते है। लड़कियों को शिक्षित किया जाए ताकि वे अपने हक और अधिकारों को जान सके। लड़कियों को शिक्षा देने से उनमें कम उम्र मे शादी के दुष्परिणाम के बारे में जागरूकता पैदा होगी। और वे स्वयं ही इसका विरोध करने लगेंगी। 
3. बाल विवाह के खिलाफ विभिन्न मीडिया जैसे सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया आदि के माध्यम से जागरूकता फैलनी चाहिए। 
4. विभिन्न तरह के नुक्कड़ नाटक, स्टेज प्रोग्राम आदि  के माध्यम से जागरूकता फैलनी चाहिए। 
5. बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए इस कुप्रथा के विरुद्ध समाज में जागरूकता लानी चाहिए. माँ बाप व अभिभावकों को इस कुप्रथा के नुकसान के बारे में बताना चाहिए. इस कार्य के लिए समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, साधु-सज्जनों व धर्म से जुड़े हुए व्यक्तियों तथा NGO की मदद ली जा सकती है.
6. बाल विवाह को रोकने के लिए सशक्त कानून बनाने चाहिए और उन्हे सख्ती से लागू करना चाहिए। 


हमारे देश में बाल विवाह को रोकने के लिए बाल विवाह अधिनियम बनाया गया है, जिसके बारें में कुछ जानकारी यहाँ देने जा रहे है।

बाल विवाह अधिनियम 1929 

ब्रिटिश शासन काल में बाल विवाह की  रोकथाम के लिए सन 1929 में बाल विवाह अधिनियम बनाया गया, जिसे 01 अप्रैल 1930 में लागू किया गया। 
1. इस अधिनियम के अनुसार  विवाह के लिए लड़के की आयु सीमा न्यूनतम 21 वर्ष एवं लड़की  की आयु सीमा न्यूनतम 18 वर्ष तय की गई थी. इससे पहले शादी करने पर उसे बाल विवाह समझा जाता था. और इसके लिए नियमानुसार सजा का प्रावधान है। 
2. इस अधिनियम के तहत 18 से 21 वर्ष की उम्र वाले  पुरुष को नाबालिग लड़की से बाल विवाह करने पर उसे 15 दिन की सजा एवं 1000 रूपये का जुर्माना देना होता था, जबकि 21 साल से अधिक के पुरुष के द्वारा नाबालिग लड़की से शादी करने पर लड़के और लड़की के माता पिता को 3 माह का कारावास व जुर्माना देना होता था। 
बाल विवाह अधिनियम 1929 में कई बार विभिन्न बदलाव किए गये थे। 

बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006 

बाल विवाह की रोकथाम के लिए पुराने अधिनियम की कुछ कमियों को दूर कर 2006 में बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006 बनाया गया जिसे 01 नवंबर 2007 को लागू किया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाह को सिर्फ रोकना ही नहीं था बल्कि पूरी तरह से खत्म करता था। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह के लिए मजबूर किये गये नाबालिग लड़कों एवं लड़कियों को उनके वयस्क होने के पहले या उसके बाद 2 साल तक उनकी शादी तोड़ने का विकल्प दिया गया है। अगर वो चाहे तो उस शादी को तोड़ सकते है। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह को एक दंडनीय एवं गैरजमानती अपराध माना है। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह सम्पन्न कराने वाले, बाल विवाह में उपस्थित व्यक्ति जिसने बाल विवाह को रोकने का प्रयास नहीं किया हो वो सभी अपराधी की श्रेणी में आते है। जिनको 2 साल की सजा व 1 लाख रुपये जुर्माने का  का प्रावधान है। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह ख़त्म होने पर लड़की के ससुराल वालों को दहेज में मिले सभी कीमती सामान, पैसा और उपहार वापस करना होता है, और लड़की को तब तक रहने के लिए स्थान प्रदान किया जाता है, जब तक कि वह बालिग नहीं हो जाती और उसकी शादी नहीं हो जाती। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह के कारण हुए बच्चे को जायज माना  जाएगा। 

बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006 की सुप्रीम कोर्ट के द्वारा  पुनर्व्याख्या

  • सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागौदर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 की पुनर्व्याख्या करते हुए कहा है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के अनुसार यदि कोई 18 से 21 वर्ष की आयु वाला पुरुष किसी बालिग लड़की से विवाह करता है तो उसे दंडित नहीं किया जा सकता। 
  • बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006  के अनुसार बाल विवाह करने वाले नाबालिग लड़का या लड़की को सजा का कोई प्रबधान नहीं है।


सदर्भ :
1. बाल विवाह  निषेध अधिनियम 2006 
2. बाल विवाह अधिनियम 1929
3. भारत में जाति (डॉ भीम राव अम्बेडकर ) पुस्तक 

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1 Comments

  1. लेख को धारधार बनाने के लिए बर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों पर काम करना जरूरी है।

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